Friday 27 July 2012

टूटे सपने


 टूटे सपने

ख्वाहिशें दम तोड़ देती है अक्सर
फैसले बदल जाते है भावनाओ में बहकर
 एक भविष्य सोचा था हमने 
पर डर लगने लगा है रह रहकर 
मन में ख्याल उमड़ने लगे है
हम भी मन को अब समझाने लगे है
चेहरे से उदासी हटती ही नहीं  है   
रह रहकर सपने डराने लगे है
मन की बातें होंठों पर कैसे लाऊ 
अपने दिल को कैसे समझाऊ
 आँखें अब पलकें भिगाने लगी है 
बातें अब कच्ची लगने लगी है 
समझ नहीं आता जुबान क्यों चुप है
खामोशी क्यों दिल में गुपचुप है
खुद की आवाज महसूस नहीं होती 
क्यों ज़िन्दगी इतनी है खोती 
कभी कभी सोचती हु मन में 
क्या आ पायेंगी खुशिया मेरे जीवन में 
खुशियों से डर लगने लगा है अब 
 हमेशा नज़र लगती है इनको तब 
जब भी मुझे ये महसूस होती है 
करीब आकर हमेशा दूर होती है  :'(
by- neha sharma