Sunday 2 December 2018

कहते थे तुम

कहते थे तुम

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सुनो तुम मेरे आँचल को खुद के चेहरे पर ओढ़कर सो जाते थे ना
तुम मुझसे मोहब्बत करते हो यही बात बार बार हर बार कहते थे ना

लो मैं आज फिर से तुमको बुलाती हूँ मेरी बाहों में सिमटने के लिये।
तुम्ही तो मेरी बाहों में हमेशा के लिये कैद हो जाने को कहते थे ना
आज न जाने ऐसी क्या बात हुई क्यों रूठ गए मुझसे इतना तुम
अपनी जान से भला कौन रूठ सकता है, हर बार यही कहते थे ना तुम
फिर किसलिये आज इस सफेद चादर में लेटकर गुमसुम हो गए हो 
हम दोनों साथ जियेंगे और मरेंगे भी साथ हमेशा कहते थे ना तुम
देखो हर वादा तोड़ दिया तुमने अभी से हार गई मैं कहती हूँ
आँसू भी न आने दूँगा तुम्हारी पलकों पर कभी भी कहते थे ना तुम
झूठे हो तुम झूठ बोलते थे वो देखो लाल जोड़ा साड़ी चूड़ी सब बिखरे पड़े हैं।
लौट आऊंगा वापस मेरी खातिर इस प्यार की खातिर ये क्यों नही कहते थे तुम।
क्या सती हो जाऊँ मैं तुम्हारे प्रेम की खातिर भूल नही सकती तुम्हे
क्यों चिता मेरे लिये भी एक और नही सजाते थे तुम
आखिर क्यों वापस जाकर लौट नही आते थे तुम
- © नेहा शर्मा

Saturday 1 December 2018

क्या बात लिखूँ

क्या बात लिखूँ 


गजल लिखूँ 
क्या बात लिखूँ 

तेरी उस छुअन का 
अहसास लिखूं
तू हर सूं मुझमे बसती है 
कैसे गुजरे दिन रात लिखूं

भीगे लब भीगी सी तू
चले जैसे हिरनी सी तू
भीगे तेरे बदन की
भीगी भीगी बरसात लिखूँ

ना जीता हूँ ना मरता हूँ
बस मारा मारा फिरता हूँ
करवट बदल बदलकर
कैसे गुजरी रात लिखूं

नेह फूल बरसा दूँ 
तेरी मद का प्यासा हूँ
तेरी इन मदमस्त ननों के
चलते बाणों सी बात लिखूं।

छम छम बजती पायल
कर जाती है घायल
कजरे से कजरारे नैन
कॉजल वाली रात लिखूं।- नेहा शर्मा