कहते थे तुम
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सुनो तुम मेरे आँचल को खुद के चेहरे पर ओढ़कर सो जाते थे ना
तुम मुझसे मोहब्बत करते हो यही बात बार बार हर बार कहते थे ना
लो मैं आज फिर से तुमको बुलाती हूँ मेरी बाहों में सिमटने के लिये।
तुम्ही तो मेरी बाहों में हमेशा के लिये कैद हो जाने को कहते थे ना
आज न जाने ऐसी क्या बात हुई क्यों रूठ गए मुझसे इतना तुम
अपनी जान से भला कौन रूठ सकता है, हर बार यही कहते थे ना तुम
फिर किसलिये आज इस सफेद चादर में लेटकर गुमसुम हो गए हो
हम दोनों साथ जियेंगे और मरेंगे भी साथ हमेशा कहते थे ना तुम
देखो हर वादा तोड़ दिया तुमने अभी से हार गई मैं कहती हूँ
आँसू भी न आने दूँगा तुम्हारी पलकों पर कभी भी कहते थे ना तुम
झूठे हो तुम झूठ बोलते थे वो देखो लाल जोड़ा साड़ी चूड़ी सब बिखरे पड़े हैं।
लौट आऊंगा वापस मेरी खातिर इस प्यार की खातिर ये क्यों नही कहते थे तुम।
क्या सती हो जाऊँ मैं तुम्हारे प्रेम की खातिर भूल नही सकती तुम्हे
क्यों चिता मेरे लिये भी एक और नही सजाते थे तुम
आखिर क्यों वापस जाकर लौट नही आते थे तुम
- © नेहा शर्मा
great words mam really amazing poem.
ReplyDeleteMast h mohtarma
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