Thursday 4 May 2017

वजूद


वजूद 

हालत देखकर अपनी रो रहा गरीब है 
उसी गरीब की रोटी पर देखो नाच रहा अमीर है 
वक़्त के खेल ने खिंची ये अमीरी गरीबी की दिवार है 
इसी सब खेल में देखो पिस रहा समाज है 
नाच रहा पैसा और उड़ रहा महंगाई का हिसाब है 
बिक रही रोटी और खोखला हो रहा इज्ज़त का प्रचार है 
मर गयी आँखों की शर्म और बिक गया गरीबो का त्यौहार है 
खाली रह गया घर और बन गया पत्थर का मकान है 
दुनिया देखी लोग देखे देखा पैसे का खेल 
तन ढकने को पैसा नहीं और जगह जगह खुली पड़ी दारु की दूकान है 
पढोगे लिखोगे बनोगे नवाब तो बोला पर आज बिक गयी स्कूल की वो किताब है 
मर गयी इंसानियत रह गया बस इंसान 
घर घर में आज बिक रहा कफन का सामान है 
By Neha Sharma

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