वजूद
हालत देखकर अपनी रो रहा गरीब है
उसी गरीब की रोटी पर देखो नाच रहा अमीर है
वक़्त के खेल ने खिंची ये अमीरी गरीबी की दिवार है
इसी सब खेल में देखो पिस रहा समाज है
नाच रहा पैसा और उड़ रहा महंगाई का हिसाब है
बिक रही रोटी और खोखला हो रहा इज्ज़त का प्रचार है
मर गयी आँखों की शर्म और बिक गया गरीबो का त्यौहार है
खाली रह गया घर और बन गया पत्थर का मकान है
दुनिया देखी लोग देखे देखा पैसे का खेल
तन ढकने को पैसा नहीं और जगह जगह खुली पड़ी दारु की दूकान है
पढोगे लिखोगे बनोगे नवाब तो बोला पर आज बिक गयी स्कूल की वो किताब है
मर गयी इंसानियत रह गया बस इंसान
घर घर में आज बिक रहा कफन का सामान है
By Neha Sharma
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